اک ترے درد کو پہلو ميں چھپارکھا ہے
،اور تو پاس مرے ہجر ميں کيا رکھا ہے
دل سے ارباب وفا کا ہے بھلانا مشکل
،ھم نے ان کے تغافل کو سنا رکھا ہے
تم نے بال اپنے جو پھولوں ميں بسارکھے ہيں
،شوق کو اور بھي ديوانہ بنا رکھا ہے
سخت بے درد ہے تاثير محبت کہ انہيں
،بستر ناز پہ سوتے سے جگا رکھا ہے
آہ وہ ياديں کہ اس ياد کو ہو کر مجبور
،دل مايوس نے مدت سے بہلا رکھا ہے
کيا تامل ہے مرے قتل ميں اے بازوئے يار
،اک ھي وار ميں سر تن سے جدا رکھا ہے
حسن کو جور سے بيگانہ نہ سمجھ، کہ اسے
،يہ سبق عشق نے پہلے ہي پڑھا رکھا ہے
تيري نسبت سے ستم گر ترے مايوسوں نے
کہتے ہيں اہل جہاں درد محبت جس کو
،نام اسي کا مضطر نے دوا رکھاہے
نگہ يار سے يکان قضا کا مشتاق
،دل مجبور نشانے پہ کھلا رکھا ہے
اسے کا انجام بھي کچھ سوچ ليا ہے حسرت
!!!...تو نے ربط ان سے جو درجہ بڑھا رکھا ہے
और तो पास मरे हिज्र में क्या रखा है,
दिल से अरबाब वफ़ा है भला मुश्किल
हम अपने तगाफल सुना रखा है,
आप बाल अपने जो फूलों में बसारखे हैं
शौक और भी दीवाना बना रखा है,
सख्त बेदर्द है प्रभावशीलता प्यार कि उन्हें
बिस्तर गर्व पे सोते से जगा रखा है,
आह वह यादें कि याद हो कर मजबूर
दिल निराशा ने समय से बहला रखा है,
क्या तमिल है मेरे हत्या में प्रथम बाज़ूए यार
इक खय दर में सिर शरीर से अलग रखा है,
हसन को जोर से बेगाना नहीं समझ, कि उसे
यह सबक इश्क ने पहले ही पढ़ा रखा है,
तेरी तुलना से सितम गिर तेरे मायोसों ने
दिल हरमाँ को भी सीने से लगा रखा है,
कहते हैं अधिकारी जहां दर्द प्यार जिसे
नाम उसी का मुज़तर ने दवा रखा,
नथान यार से यकान क़ज़ा का मुश्ताक
दिल मजबूर निशाने पर खुला रखा है,
इसे अंजाम भी सोच लिया है हसरत
तो लिंक उनसे जो स्थिति बढ़ा रखा है...!!!